SEBI प्रमुख माधाबी बुच पर हिंडनबर्ग की गंभीर आरोप: अडाणी ग्रुप से जुड़ी विदेशी संस्थाओं में हिस्सेदारी का मामला

SEBI प्रमुख माधाबी बुच पर हिंडनबर्ग की गंभीर आरोप: अडाणी ग्रुप से जुड़ी विदेशी संस्थाओं में हिस्सेदारी का मामला अग॰, 11 2024

हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा जारी एक रिपोर्ट में SEBI की प्रमुख माधाबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अडाणी ग्रुप से जुड़ी बर्मूडा और मॉरिशस आधारित विदेशी फंड्स में हिस्सेदारी रखी थी। रिपोर्ट में उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए कि उन्होंने 2015 में सिंगापुर में IPE प्लस फंड 1 के साथ एक खाता खोला था, जो अडाणी के एक निर्देशक द्वारा स्थापित एक जटिल विदेशी फंड संरचना का हिस्सा था। हिंडनबर्ग ने यह भी सुझाव दिया कि SEBI की अडाणी ग्रुप के खिलाफ कार्रवाई करने की अनिच्छा शायद माधाबी बुच की इन फंड्स के साथ जुड़ाव के कारण हो सकती है।

माधाबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने इन आरोपों को सख्ती से नकारते हुए कहा कि उनके सभी वित्तीय प्रकटीकरण SEBI के प्रति पारदर्शी रहे हैं और वे किसी भी अधिकारी को आवश्यक दस्तावेज प्रदान करने में कोई हिचकिचाहट नहीं रखते। उन्होंने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि यह हिंडनबर्ग की तरफ से SEBI की कार्यवाही के प्रतिक्रियास्वरूप एक चरित्र हनन का प्रयास है। बुच परिवार ने जोर देकर कहा कि उनके वित्तीय कार्य स्पष्ट और पूरी तरह से प्रकट किए गए हैं।

इस विवाद ने भारत की वित्तीय नियामक संस्थाओं के भीतर नियामकीय निगरानी और संभावित हितों के टकराव के मुद्दों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मान लिया जाता है कि SEBI के चीफ का ऐसा कोई मामला हो सकता है जिससे सम्पूर्ण वित्तीय नियामक ढांचा प्रदूषित हो सकता है। नियामकीय संस्थाएं जहां निवेशकों के हितों की रक्षा करती हैं, वही ऐसे आरोप उनके विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं।

हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोप मुख्यतः बुच परिवार के विदेशी संस्थाओं के साथ वित्तीय संबंधों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि बुच परिवार ने 2015 में IPE प्लस फंड 1 के साथ एक खाता खोला, जोकि सिंगापुर में स्थित है और अडाणी ग्रुप के एक डायरेक्टर द्वारा स्थापित एक जटिल संरचना का हिस्सा है। हिंडनबर्ग का दावा है कि IPE का इस्तेमाल वीनोद अडाणी द्वारा अडाणी ग्रुप के शेयरों में ट्रेड करने के लिए किया गया था।

इस आरोप को और गंभीर बनाने के लिए रिपोर्ट में कहा गया कि SEBI की अडाणी ग्रुप के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने की नीति शायद माधाबी बुच के इन फंड्स में शामिल होने से प्रभावित है। यह एक ऐसा आरोप है जो ना केवल SEBI की प्रमुख के व्यक्तिगत ईमानदारी पर सवाल उठाता है बल्कि नियामक संस्था की विश्वसनीयता पर भी गहरा धब्बा लगाता है।

वित्तीय पारदर्शिता और रहन-सहन पर प्रकाश

माधाबी पुरी बुच और धवल बुच ने इन्हें निराधार बताते हुए कहा है कि वे किसी भी नियामक या कानून प्रवर्तन एजेंसी के समक्ष अपने वित्तीय दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उनका यह भी कहना है कि सभी आवश्यक वित्तीय प्रकटीकरण SEBI को पहले ही प्रस्तुत किए जा चुके हैं और वे किसी भी तरह से गोपनीय नहीं रखे गए हैं। बुच परिवार का तर्क है कि यह उनकी समर्पित सेवा और कार्यवाही के मामले में एक बदनीयतीपूर्ण हमला है।

बुच परिवार ने अपनी वित्तीय स्थिति और निवेश को पूरी तरह से पारदर्शी बताया और हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को झूठा करार दिया। उनका कहना है कि उनके वित्तीय लेनदेन कोई गोपनीय नहीं है और उन्होंने अपने सभी वित्तीय दस्तावेज समय-समय पर प्रकट किए हैं। वे इस मामले में किसी भी जांच का स्वागत करते हैं और इसे SEBI की साख पर एक षड्यंत्र बताया है।

नियामकीय स्थायित्व पर चिंता

यह मामला नियामक स्थायित्व पर गंभीर प्रश्न उठाता है। निवेशकों और वित्तीय समुदाय के भीतर यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि SEBI जैसी प्रमुख नियामक संस्था के शीर्ष पदाधिकारी पर इस प्रकार के गंभीर आरोप लगने से संस्था की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोप अपने आप में काफी गंभीर हैं और इनका निष्पक्ष जांच का होना आवश्यक है।

यह मामला SEBI के भीतर संचालित होने वाली प्रक्रियाओं और संस्थागत प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालता है। किसी भी नियामक संस्था की विश्वसनीयता उसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है और इस मामले ने SEBI की विश्वसनीयता पर गहरा असर डाला है। इसे अधिक पारदर्शिता और उचित निरीक्षण की आवश्यकता है ताकि निवेशकों का विश्वास बहाल हो सके।

इस प्रकार के आरोप और विवाद निश्चित रूप से वित्तीय बाजार में अशांति फैला सकते हैं। निवेशकों का विश्वास और वित्तीय स्थायित्व दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं और इस मामले ने दोनों को ही प्रभावित किया है। इसे सुलझाने के लिए निष्पक्ष और प्रभावशाली जांच की आवश्यकता है ताकि सत्य सामने आ सके और नियामकीय प्रक्रियाओं में सुधार हो सके।