समाज और जनजीवन के बदलते स्वरूप

जब बात समाज और जनजीवन, एक ऐसा सामाजिक ताना‑बाना जहाँ लोग, परम्पराएँ और विचार आपस में जुड़े होते हैं, सामाजिक संरचना की होती है, तो सबसे पहले दिमाग में सवाल आता है – क्या हम सच में बदलाव को महसूस कर रहे हैं? इस श्रेणी में आपको धार्मिक आश्रम, ऐसे स्थान जहाँ आध्यात्मिक अभ्यास, सामाजिक सेवा और शिक्षा मिलती है और स्वयंभू उपदेशक, वो लोग जो आध्यात्मिक या सामाजिक संदेश बिना किसी संस्थागत अधिकार के फैलाते हैं जैसे प्रमुख इकाइयों का मिलना‑जुलना दिखता है। इनकी कहानी अक्सर स्थानीय नेता‑गठनों से जुड़ी होती है, जैसे कि किस तरह गाँव के बुजुर्ग या युवा नेता सामाजिक बदलाव की दिशा तय करते हैं।

UP पुलिस कांस्टेबल बना 'भोले बाबा': देखिए कैसे सुराज पाल सिंह बने एक स्वयंभू उपदेशक
UP पुलिस कांस्टेबल बना 'भोले बाबा': देखिए कैसे सुराज पाल सिंह बने एक स्वयंभू उपदेशक

उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस कांस्टेबल सुराज पाल सिंह ने 'भोले बाबा' के रूप में नया जीवन शुरू किया। कसगंज जिले के बहादुर नगर गांव के निवासी सिंह ने 1990 के दशक में पुलिस की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने अपने गांव में 30 बिघा जमीन पर एक आश्रम बनाया, जो कई जिलों और राज्यों से आगंतुकों को आकर्षित करता है।