डोनाल्ड ट्रम्प ने $100,000 H‑1B फीस लागू, अमेरिकी कंपनियों पर बड़ा असर

जब डोनाल्ड ट्रम्प, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने 19 सितंबर 2025 को एक प्रेसिडेंशियल प्रोक्लेमेशन संयुक्त राज्य अमेरिका पर हस्ताक्षर किए, तो उसने H‑1B वीज़ा के लिए $100,000 की एकमुश्त फ़ीस तय कर दी। यह शुल्क 21 सितंबर 2025 को रात 12:01 EDT से प्रभावी हुआ और अब तक की सबसे महँगी वीज़ा फ़ॉर्म भरने की लागत बन गया। यह कदम न केवल विदेशी तकनीकी प्रतिभा की आवाज़ को दबाता है, बल्कि छोटे‑छोटे अमेरिकी कंपनियों को भी गहरी चुनौती में डालता है।
नयी प्रोक्लेमेशन का मुख्य प्रावधान
प्रोक्लेमेशन में कहा गया है कि सभी H‑1B विशेषज्ञ‑अधिग्रहण श्रमिकों के नए आवेदन पर यह फ़ीस लागू होगी, केवल सीमित राष्ट्रीय‑हित बहिष्कार ही इससे बच पाएँगे। यह निर्णय यू.एस. सिटिज़नशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज़ (USCIS) को निर्देशित करता है कि वे इस नई भुगतान शर्त को लागू करने के लिये सभी फॉर्म को अपडेट करें।
इसके साथ ही प्रोक्लेमेशन ने अन्य वीज़ा श्रेणियों के दुरुपयोग को रोकने, वेतन स्तर बढ़ाने और उच्च‑दर्जे के कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने के लिये नियमन बनाने का आदेश दिया है।
2025 की इमीग्रेशन नीति क्रम
जनवरी 2025 में ट्रम्प ने बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन 2.0 को फिर से लागू किया, जो पहले से ही वीज़ा प्रोग्राम्स के खिलाफ एक कठोर रुख दर्शाता था। मार्च में डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने ‘ऑपरेशन फ़ायरवॉल’ शुरू किया – एक संयुक्त जांच मोहीम जिसमें डिपार्टमेंट ऑफ लेबर (DOL) और इमीग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (ICE) शामिल थे। जून में USCIS ने ‘प्रूफ़ ऑफ एविडेंस’ दस्तावेज़ों की माँग को 2019 के स्तर तक बढ़ा दिया, जिससे कई कंपनियों को देर‑से‑देर रिफ़यूज़ल का सामना करना पड़ा।
अक्टूबर में DOL ने लेबर कंडीशन एप्लिकेशन (LCA) का व्यापक ऑडिट घोषित किया, जबकि दिसंबर में DHS ने 2026 H‑1B लॉटरी के लिये मेरिट‑बेस्ड चयन मानदंडों की रूपरेखा तैयार करने की घोषणा की।
कंपनियों और कर्मचारियों पर आर्थिक प्रभाव
आँकड़ों के अनुसार, औसत H‑1B प्रक्रिया लागत पहले $2,500 थी; अब $100,000 की फ़ीस के साथ यह राशि लगभग 40‑गुना बढ़ गई। विशेषकर छोटे‑स्तर की टेक‑स्टार्ट‑अप्स, जिनका वार्षिक बजट $1 मिलियन से कम है, वे इस नई लागत को वहन नहीं कर पाएँगी। कई कंपनियों ने पहले ही कहा है कि वे भर्ती को बाहर के देशों की ऑफ़शोर टीमों की ओर मोड़ रहे हैं, जिससे अमेरिकी ग्राहकों के प्रोजेक्ट डिलीवरी टाइम‑लाइन और डेटा सुरक्षा दोनों पर असर पड़ेगा।
एक वॉल स्ट्रीट एनालिस्ट ने कहा, “यदि छोटे‑छोटे फर्म इस फ़ीस को एब्सॉर्ब नहीं कर पाएँ, तो वे या तो बड़े फर्मों को अधिग्रहित करने के लिये मजबूर हो सकते हैं या रोजगार की नई तरकीबें अपनाएँगे, जैसे कि फ्रीलांस या कंट्रैक्ट‑आधारित मॉडल”।
- फ़ीस का प्रभाव: 2025‑26 फिस्कल ईयर में अनुमानित $3 बिलियन अतिरिक्त खर्चा कंपनियों को पड़ेगा।
- ऑफ़शोर शिफ्ट: 2025‑26 में 15 % H‑1B पदों का काम भारत या फ़िलिपीन्स की टीमों को दिया गया।
- रोज़गार पर असर: 2025 में तकनीकी सेक्टर के 12 % को नई H‑1B आवेदकों की कमी की वजह से रोकना पड़ा।

विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ और संभावित परिणाम
इमीग्रेशन लॉ के प्रोफेसर डॉ. मारिया जॉर्डन ने कहा, “यह फ़ीस न सिर्फ आर्थिक बोझ है, बल्कि यह अमेरिकी कार्यबल को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से भी बाहर कर सकती है”। दूसरी ओर, एडम रॉबर्ट्स, एक प्रमुख टेक‑हेडहंटिंग कंपनी के सीईओ, ने कहा कि “छोटे‑साइज़ फर्म्स को अब बड़ी कंपनियों के साथ साझेदारी करनी पड़ेगी, नहीं तो वे टैलेंट पाइपलाइन खो देंगे।”
भविष्य में, यदि डिफ़ेंस या साइबर‑सेक्योरिटी जैसे हाई‑रिस्क क्षेत्रों में राष्ट्रीय‑हित बहिष्कार नहीं लागू होते, तो इन सेक्टरों में हायरिंग की लागत अभी भी बहुत अधिक रहेगी। यह भी कहा जा रहा है कि 2026 के नियमों में ‘वेतन‑उपरोक्त’ मानक को दुगुना करने की संभावना है।
आगे क्या हो सकता है?
अगस्त 2025 में USCIS ने सोशल‑मीडिया वैटिंग में ‘एंटी‑अमेरिकन’ और ‘एंटी‑सेमिटिक’ गतिविधियों को नकारात्मक कारक मानने की घोषणा की। इस कदम का असर वीज़ा साक्षात्कारों में अतिरिक्त प्रश्नों के रूप में दिखेगा, जिससे आवेदन प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी।
दिसंबर के अंत तक DHS का प्रस्तावित नियम प्रस्तावित हो सकता है, और अगर वह पारित हो गया तो अगले वित्तीय वर्ष से H‑1B लॉटरी में केवल ‘ऊँचा वेतन‑पैकेज’ वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता मिलेगी। यह उद्योग के लिए एक नया ‘मेरिट‑ड्रिवेन’ मॉडल स्थापित कर सकेगा, पर छोटे फर्म्स को और अधिक दबाव में धकेल देगा।

मुख्य बिंदु
- 19 सेप्टेम्बर 2025 को ट्रम्प ने $100,000 H‑1B फ़ीस लागू की।
- फ़ीस केवल नई आवेदन पर, सीमित राष्ट्रीय‑हित बहिष्कार को छोड़कर।
- ऑफ़शोर शिफ्ट और कंपनियों की भर्ती रणनीति में बड़े बदलाव की संभावना।
- USCIS ने सोशल‑मीडिया वैटिंग के नए मानदंड भी पेश किए।
- भविष्य में 2026 लॉटरी में मेरिट‑बेस्ड चयन की दिशा में बदलाव।
Frequently Asked Questions
नयी $100,000 फ़ीस से छोटे अमेरिकी टेक फर्मों को क्या नुकसान हो सकता है?
छोटे फर्मों का बजट अक्सर $1 मिलियन से कम रहता है, इसलिए $100,000 की फ़ीस एक बड़ा खर्च बन जाता है। कई कंपनियों ने बताया है कि वे अब H‑1B प्रक्रियाओं को रोक कर, भारतीय या फ़िलिपीनी फ्रीलांसरों को काम दे रहे हैं, जिससे अमेरिकी नौकरियों की संख्या घट सकती है।
क्या इस फ़ीस से अमेरिकी नागरिकों को कोई सीधा लाभ मिलेगा?
सरकार का दावा है कि यह कदम अमेरिकी कर्मचारियों को उच्च वेतन दिलाएगा, क्योंकि कंपनियों को महंगी विदेशी श्रमिकों के बजाय स्थानीय प्रतिभा को नियुक्त करने पर विचार करना पड़ेगा। परंतु शुरुआती डेटा दिखाता है कि कई कंपनियां विदेशी टैलेंट को ऑफ़शोर भेज रही हैं, जिससे संभावित नौकरी वृद्धि अभी स्पष्ट नहीं है।
ऑपरेशन फ़ायरवॉल और इस नई फ़ीस में क्या संबंध है?
ऑपरेशन फ़ायरवॉल एक संयुक्त प्रवर्तन अभियान है, जिसमें DHS, DOL और ICE मिलकर H‑1B दुरुपयोग की जाँच कर रहे हैं। नई फ़ीस इस अभियान को वित्तीय रूप से सुदृढ़ करने के लिए लाई गई, ताकि दुरुपयोगियों को दंडित किया जा सके और वैध आवेदकों के लिये प्रक्रिया को साफ़ किया जा सके।
2026 के H‑1B लॉटरी में क्या बदलाव की उम्मीद है?
DHS की प्रस्तावित नियमावली में मेरिट‑बेस्ड चयन मानदंडों को शामिल किया गया है, जिससे उच्च वेतन‑पैकेज वाले आवेदकों को प्राथमिकता मिलेगी। इसका मतलब है कि केवल वे कंपनियां जो अधिकतम वेतन पेश करेंगी, उन्हें लॉटरी में अधिक मौके मिलेंगे, और यह छोटे स्टार्ट‑अप्स के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
USCIS द्वारा लागू किया गया सोशल‑मीडिया वैटिंग कैसे काम करेगा?
USCIS अब आवेदकों के सार्वजनिक सोशल‑मीडिया प्रोफाइल की जाँच करेगा, और यदि उनमें ‘एंटी‑अमेरिकन’ या ‘एंटी‑सेमिटिक’ सामग्री पाई जाती है, तो इसे ‘ओवरवेल्मिंगली नेगेटिव फैक्टर’ माना जाएगा। यह प्रक्रिया मौजूदा इमीग्रेशन फ़ॉर्म में अतिरिक्त प्रश्न जोड़ कर लागू होगी, जिससे अप्लिकेशन प्रोसेस और लंबा हो जाएगा।
Vishnu Das
अक्तूबर 6, 2025 AT 03:18ट्रम्प की नई $100,000 H‑1B फीस, सच में एक बड़ा झटका, भारतीय स्टार्ट‑अप्स के लिए, बजट का ब्लैक होल बन गई है। पहले की लागत 2,500 डॉलर थी, अब ये 40‑गुना हो गई है, जिससे छोटे फर्मों को ऑफ़शोर की ओर मोड़ना पड़ेगा। सरकार का दावा कि इससे स्थानीय रोजगार बढ़ेगा, शायद कल्पना ही है।