ईरान का दावा: फारस की खाड़ी के द्वीपों पर ब्रिटिश नक्शा और ऐतिहासिक दस्तावेजों का सहारा
नव॰, 13 2024फारस की खाड़ी में विवाद का इतिहास
फारस की खाड़ी में स्थित तीन द्वीपों - अबू मूसा, ग्रेटर टुंब और लेसर टुंब - की स्थिति रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये द्वीप स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज के प्रवेश द्वार पर स्थित हैं, जो विश्व की लगभग 20% तेल और 25% द्रवीकृत प्राकृतिक गैस के लिए एक अहम मार्ग है। इस वजह से यह क्षेत्र विश्व की भू-राजनीतिक नक्शे में हमेशा से एक महत्वपूर्ण बिंदु रहा है। ईरान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच दशकों से इन द्वीपों पर कब्जे को लेकर विवाद चला आ रहा है। हर दो पक्ष सिर्फ क्षेत्र या संपत्ति के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनके बीच एक विशाल रणनीतिक मूल्य को लेकर भी टकराव है।
ब्रिटिश नक्शा और ईरान का दावा
इस विवाद को और अधिक जटिल बनाने के लिए, ईरान ने 19वीं सदी के एक ब्रिटिश नक्शे का सहारा लिया है, ताकि इस समयावधि में अपने क्षेत्रीय दावे को सिद्ध किया जा सके। यह नक्शा 27 जुलाई 1888 को ईरानी शाह नासेर अल-दिन शाह क़ाजार को ब्रिटिश राजदूत हेनरी ड्रमोंड वोल्फ द्वारा दिया गया था। ईरान अपनी दावेदारी को मजबूत करने के लिए न केवल इस नक्शे पर बल्कि एक 1892 की किताब "पर्शिया एंड द पर्शियन क्वेश्चन" पर भी निर्भर कर रहा है, जिसे भारत के तत्कालीन वायसराय और गवर्नर जनरल जॉर्ज कर्ज़न ने लिखा था।
यूएई और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस विवाद की गंभीरता तब और बढ़ गई जब यूरोपीय संघ ने खाड़ी सहयोग परिषद के साथ मिलकर ईरान के द्वीपों की 'कब्जे' की आलोचना करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया। यह बयान लंबे समय से चले आ रहे इस मुद्दे को और भी पेचीदा बना देता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष इस मामले की नई परतें खुल कर आ रही हैं। यूएई का भी दावा है कि ये द्वीप उसके हैं और इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय समर्थन ने उसके दावे को बल दिया है।
विवादास्पद स्थिति और क्षेत्रीय तनाव
इस विवाद की वजह से फारस की खाड़ी में तनाव कभी कम नहीं हुआ। ईरान और यूएई के बीच लगभग 20 वर्षों तक एक अस्थायी संधि बनी रही थी, जिसमें दोनों देशों ने अबू मूसा के अपतटीय तेल राजस्व को साझा किया। लेकिन 1992 में इस विवाद के समाधान के लिए चली वार्ता के विफल हो जाने के बाद ईरान ने इन द्वीपों पर अपनी सैन्य उपस्थिति को और मजबूत कर दिया।
द्वीपों का सामाजिक और सामरिक महत्त्व
अबू मूसा इन तीन द्वीपों में एकमात्र ऐसा द्वीप है जहां नागरिक आबादी निवास करती है। यहां लगभग 2,000 लोग रहते हैं। इन लोगों की जीवनशैली और आजीविका इससे जुड़े सामरिक विवादों से प्रभावित होती है। द्वीपों की नियंत्रक शक्ति के रूप में ईरान की उपस्थिति से यह मुश्किल और पेचीदा स्थिति और भी जटिल होती जा रही है। इसके सामरिक महत्व के कारण यह विवाद समाप्त होने की बजाय और गहराता जा रहा है।
भविष्य की संभावनाएं
फारस की खाड़ी में स्थिति का उग्र होना किसी भी प्रकार से क्षेत्रीय या वैश्विक शांति के लिए संतोषजनक नहीं है। इन द्वीपों को लेकर चल रहे विवाद को रोकने के लिए दोनों देशों को बेहतर कूटनीतिक वार्ता की आवश्यकता है। राजनीतिक परिदृष्य पर छोटी-छोटी बातें बड़े विवादों का कारण बन सकती हैं और इसी कारण, यह आवश्यक है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे को महत्व दे और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में प्रयास बढ़ाए।