क्रिकेट कोच गौतम गंभीर की रणनीतियों पर उठ रहे सवाल: श्रृंखला हार के बाद दबाव में
 नव॰,  5 2024
                                                नव॰,  5 2024
                        गौतम गंभीर की रणनीतियों पर सवाल
भारत के प्रतिष्ठित क्रिकेटर और हाल ही में नियुक्त हुए कोच, गौतम गंभीर का कार्यकाल शुरू से ही चुनौतियों से भरा रहा है। मात्र तीन महीने के भीतर ही टीम ने श्रीलंका और न्यूजीलैंड जैसी टीमों के खिलाफ करारी हार का सामना किया है, जिस कारण उनके निर्णय और रणनीतियों की चौतरफा आलोचना हो रही है। श्रीलंका के खिलाफ 27 वर्षों में पहली बार ओडीआई श्रृंखला में हार और भारत में ही न्यूजीलैंड के खिलाफ 3-0 से टेस्ट श्रृंखला की सफेदी ने गंभीर की स्थिति को और कठिन बना दिया है।
गंभीर के चयन प्रक्रिया में नए विचार
गंभीर को ऑस्ट्रेलिया दौरे के चयन समिति की बैठक में एक अपवाद के रूप में आमंत्रित किया गया था, जो उनके कद और दौरे की महत्वपूर्णता का परिणाम था। लेकिन उनके द्वारा हरशित राणा और नितीश रेड्डी का बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए चयन, कुछ खेल प्रेमियों को चौंका गया। जहां राणा को सफेद गेंद के मैच में कोई मौका नहीं मिला, वहीं रेड्डी की कमजोरियाँ भी उजागर हो गईं। इन चयन प्रक्रियाओं की भी व्यापक रूप से निंदा की जा रही है।
खेल परिस्थितियों के बावजूद एकसमान खेल की नीति
गंभीर की यह आस्था कि खेल परिस्थितियों के बावजूद खेल का तरीका नहीं बदलना चाहिए, भी आलोचनाओं का शिकार हो रही है। खासकर यह सिरदर्द तब बढ़ा जब उन्होंने तीसरे टेस्ट में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ मोहम्मद सिराज को नाइट-वॉचमैन और सरफराज खान को नं. 8 पर भेजने का निर्णय लिया। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड (BCCI) उनके कदमों पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं और यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला उनके लिए एक बड़ा मापदंड साबित होगी।
खेल की परिस्थितियों में बदलाव करने की गंभीर की नीतियों को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। उनके इस रवैये ने न सिर्फ सीनियर खिलाड़ियों की बल्कि युवा खिलाड़ियों की भी खेल रणनीतियों पर असर डाला है। कयास लगाए जा रहे हैं कि गंभीर को कुछ सीनियर खिलाड़ियों से कठिन निर्णय लेने पड़ सकते हैं, जिन्हें इस संकट के समय में बाहर का रास्ता दिखाना पड़ सकता है।
भारतीय क्रिकेट में एक लम्बे समय से उपकरणों और तकनीकी बदलाव की बात होती रही है, लेकिन गंभीर की सरल रणनीतियों ने 'कोई समझौता न करें' के दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है। यह नीति विशेष रूप से इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की घटनाओं में प्रभाव दिखाने में विफल रही है, लेकिन टीम के मजबूत कोर बनाने के उनके विचार का समर्थन करता है। नई 'जीतो या सीखो' की नीति टीम के भीतर नई ऊर्जा का संचार कर सकती है, जो टीम के भविष्य के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।