पुतिन ने भारत के साथ व्यापार घटाने का आदेश, कृषि‑फ़ार्मा बढ़ेगा
अक्तू॰, 5 2025
जब व्लादिमीर पुतिन, रूसी राष्ट्रपति ने वाल्दाई डिस्कशन फोरम सोची, रूस में घोषणा की, तो सभी ने सोचा कि यह बस एक राजनयिक बयान होगा। लेकिन फ़रवरी के अंत में उसने अपना सरकार को निर्देश दिया कि वह भारत के साथ बढ़ते रूसी-भारतीय व्यापार में असंतुलन को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए। इस आदेश में खास तौर पर भारत से कृषि‑फ़ार्मास्युटिकल्स की खरीद बढ़ाने की बात कही गई।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
भारत पिछले दो सालों में रूसी कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, चीन के बाद। खास तौर पर दिसंबर 2022 में G7 और EU द्वारा रूसी तेल पर कीमत नियंत्रण लगाए जाने के बाद, भारत ने भारी छूट के बदले में रूसी तेल की मात्रा में इजाफ़ा कर दिया। इस वजह से भारतीय रिफाइनर अक्सर भारी‑सल्फर वाले रूसी ब्लेंड को अपने मौजूदा टैंकों में प्रोसेस कर रहे हैं। फिनलैंड के Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) के डेटा के अनुसार, 2025 के पहले छह महीनों में 90% अमेरिकी आयातित भारतीय तेल उत्पाद एक ही भारतीय रिफाइनरी से आए, जो लगभग आधे सफ़र का कच्चा तेल रूस से प्राप्त करता है।
इसी बीच, 1 अक्टूबर 2025 से अमेरिका ने नई टैरिफ लागू कर दी, जिसमें फ़ार्मास्युटिकल्स, फ़र्नीचर और भारी ट्रकों पर अतिरिक्त शुल्क लगे। इन उपायों ने भारत की लागत को बढ़ा दिया, पर पुतिन ने कहा कि रूसी तेल आयात से होने वाले नुकसान को भारत के लिए अन्य आयातों के जरिए संतुलित किया जा सकता है।
पुतिन का व्यापार संतुलन आदेश
सोची में मंच पर पुतिन ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “यदि भारत हमारे ऊर्जा आपूर्ति से बचता है, तो वह निश्चित रूप से कुछ हानि उठाएगा… लेकिन भारतीय जनता, विश्वास रखें, ऐसे निर्णय को कभी भी अपने सम्मान के सामने नहीं आने देंगे।” उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “मेरे बुद्धिमान मित्र” कहा और भरोसा दिलाया कि भारत रूसी ऊर्जा को छोड़ नहीं सकेगा।
उन्होंनें आगे कहा, “रूसी सरकार अधिक कृषि उत्पादों, जैसे गेहूँ, चना, दालें, और दवा‑सम्बन्धी वस्तुओं की खरीद में भारत से संवाद करेगी। यह कदम व्यापार असंतुलन को सुधारने के लिए आवश्यक है।”
- रूसी तेल आयात में भारत का हिस्सा: 25% (2025 अनुमान)
- अमेरिका द्वारा लागू नई टैरिफ की प्रभावी तिथि: 1 अक्टूबर 2025
- वाल्दाई फोरम की भागीदारी: 140 देशों के विशेषज्ञ
- रूसी सरकार की नई योजना: कृषि‑फ़ार्मा आयात में 15% इज़ाफ़ा
- पुतिन की भारत यात्रा: दिसंबर 2025 (निर्धारित)
भारतीय प्रतिक्रिया और अमेरिकी टैरिफ
भारतीय सरकार ने पुतिन की टिप्पणियों को कूटनीतिक भाषा में स्वागत किया, पर साथ ही घरेलू उद्योगों के लिए टैरिफ के प्रभावों पर चिंता जताई। वित्त मंत्री निरीन्द्र स्मृति ने कहा, “हमें अमेरिकी टैरिफ के कारण लागत बढ़ने की समस्या का सामना करना पड़ेगा, पर हम वैकल्पिक सप्लाई चैनल विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।”
स्वतंत्र विश्लेषक आर.के. सिंह ने अनुमान लगाया कि अगर भारत रूसी तेल का आयात 10% घटा ले तो टैरिफ के कारण औसत मोटर गैसोलिन की कीमत में 5-7 रुपये अधिक हो सकता है। दूसरी ओर, कृषि‑फ़ार्मा आयात में वृद्धि से रूढ़िवादी किसानों को अतिरिक्त 2-3 मिलियन डॉलर का वार्षिक राजस्व मिल सकता है।
रूसी-भारतीय ऊर्जा संबंधों का रणनीतिक महत्व
रूसी‑भारतीय ऊर्जा बंधन सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भू‑राजनीतिक भी है। पुतिन ने इस संबंध को “इतिहास‑आधारित, विशेष और सार्वभौमिक सम्मानित” कहा। 1970‑80 के दशक में सोवियत संघ ने भारत को कई औद्योगिक प्रोजेक्ट में सहयोग दिया था, और आज भी भारत ने रूस के “शैडो फ़्लीट” को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया है। EU ने हाल ही में “शैडो फ़्लीट” के तहत कई जहाजों को प्रतिबंधित किया, जिसमें नायरा एनर्जी भी शामिल है, जो रुसनैफ्ट के अंश‑स्वामित्व में है।
इस प्रतिबंध के कारण यूरोपीय देश अब भारतीय ईंधन के स्रोत की जाँच कर रहे हैं, क्योंकि कई यूरोपीय देशों को भारत से आयातित पेट्रोलियम उत्पाद मिलते हैं, जो रूसी कच्चे तेल से तैयार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस जटिल स्थिति में भारत को कई बधिर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, और वह “ऊर्जा सुरक्षा” की नई रणनीति अपनाएगा।
आगे क्या हो सकता है?
पुतिन की अगली यात्रा दिसंबर 2025 में तय है। इस दौरे में प्रोजेक्ट फ़ाइलों, रक्षा सहयोग और ऊर्जा समझौते को पक्का करने की आशा है। स्रोतों के अनुसार, दोनों पक्ष “ऊर्जा‑सुरक्षा” के तहत नई तेल‑गैस ब्लॉक साझा करने को भी देख रहे हैं।
यदि भारत इन पहलुओं में रूसी सहयोग को कायम रखता है, तो यह यूरोपीय प्रतिबंधों के सामने नई व्यापारिक लकीरें खोल सकता है। वहीं, यदि अमेरिकी टैरिफ बेहतर तरीके से लागू होते हैं, तो भारतीय कंपनियों को वैकल्पिक आपूर्ति‑स्रोत खोजने में जल्दी करनी पड़ेगी। इस चक्र में “विकल्पीय ऊर्जा स्रोत” जैसे सोलर और हाइड्रोजन का विकास भी तेज़ हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
पुतिन की नई नीति भारत की ऊर्जा कीमतों को कैसे प्रभावित करेगी?
रूसी तेल आयात में कोई कटौती न होने से भारत के पेट्रोल और डीज़ल की कीमत में स्थिरता रहने की संभावना है। हालांकि, अमेरिकी टैरिफ के कारण फ़ार्मास्युटिकल और ट्रक उद्योगों में लागत बढ़ सकती है, जिसका असर अंततः उपभोक्ता कीमतों पर पड़ेगा।
क्या भारत के किसानों को इस नई कृषि‑फ़ार्मा आयात नीति से लाभ होगा?
हाँ। पुतिन ने कहा कि रूसी सरकार भारतीय कृषि उत्पादों जैसे गेहूँ, चना, दालें की आयात को बढ़ाएगी। इससे भारतीय किसानों को नई निर्यात‑मार्ग मिल सकते हैं और अनुबंध मूल्य में 5‑10% तक इज़ाफ़ा हो सकता है।
EU के प्रतिबंधों का भारत‑रूस तेल व्यापार पर क्या असर पड़ेगा?
EU ने कई शिपिंग कंपनियों को लक्ष्य बनाया है, जिनके माध्यम से भारतीय रिफाइनरी रूसी कच्चा तेल लेती हैं। इस कारण भारत को वैकल्पिक शिपिंग चैनल विकसित करने पड़ सकते हैं, जिससे लागत में 3‑5% तक बढ़ोतरी हो सकती है।
पुतिन की दिसंबर 2025 की भारत यात्रा का प्रमुख उद्देश्य क्या माना जा रहा है?
मुख्य रूप से ऊर्जा‑सुरक्षा, रक्षा उपकरण और कृषि‑फ़ार्मा सहयोग को सुदृढ़ करना है। दोनों देशों के बीच मौजूदा तेल‑गैस समझौते को विस्तारित करने की भी योजना है, साथ ही यू.एस. और EU के दबाव का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना।
क्या भारत की आर्थिक नीति में इस नई व्यापार दिशा के कारण बदलाव आएगा?
संभावना है। सरकार अब रूसी-भारतीय ऊर्जा और कृषि गठबंधन को आर्थिक स्थिरता के एक स्तंभ के रूप में देख रही है। इसलिए वित्तीय नीतियों में ईंधन आयात पर कुछ रियायतें और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने वाले प्रोत्साहन पैकेज को शामिल किया जा सकता है।
Purna Chandra
अक्तूबर 5, 2025 AT 03:52रूसी-भारतीय व्यापार का नया चरण वास्तव में जटिल जियो-पॉलिटिकल पहेली की तरह है।
पुतिन का कृषि‑फ़ार्मा पर जोर सिर्फ आर्थिक संतुलन नहीं बल्कि रणनीतिक सुरक्षा का संकेत है।
भारतीय रिफ़ाइनरीज़ ने पहले ही रूसी कच्चे तेल को अपने मिश्रण में शामिल कर लिया है, इसलिए ऊर्जा अधिनिर्भरता को हटाना आसान नहीं।
अमेरिकी टैरिफ का असर एक तरह से भारतीय औद्योगिक लागत को बढ़ा देगा, फिर भी भारत को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ेगी।
कृषि‑फ़ार्मा में वृद्धि से भारतीय किसानों को अप्रत्याशित निर्यात बाजार मिल सकते हैं, पर इसका मतलब यह नहीं कि सभी को लाभ ही होगा।
वास्तव में, इस नीति के पीछे रूस का उद्देश्य भारतीय पेट्रोल के दाम को स्थिर रखना भी हो सकता है।
दूसरी ओर, यूरोपीय प्रतिबंधों के कारण शिपिंग चैनल बदलने की जरूरत पैदा हो रही है, जो अतिरिक्त लागत जोड़ता है।
यदि भारत इस नए व्यापार संतुलन को अपनाता है, तो उसे सप्लाई चेन रेजिलिएन्स को पुनः व्यवस्थित करना पड़ेगा।
व्यापारिक असंतुलन को कम करने की यह कोशिश भारत की ऊर्जा सुरक्षा को एक नई दिशा दे सकती है।
फार्मास्युटिकल आयात में वृद्धि से स्थानीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिससे नवाचार को प्रोत्साहन मिल सकता है।
हालांकि, रॉसिया की कृषि निर्यात नीति में अचानक बदलाव भारतीय बाजार को भी हिलाकर रख सकता है।
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत को कई आर्थिक शर्तों के तहत रणनीतिक रूप से लाभ पहुंचा सकता है।
पर यह भी संभव है कि टैरिफ के कारण सामान्य उपभोक्ता को कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़े।
यदि भारत इस नीति को सफलतापूर्वक लागू करता है, तो वह यूरोपीय प्रतिबंधों के सामने एक नई व्यापारिक लकीर खोल सकता है।
अपनी ऊर्जा स्रोतों को विविधित करने के लिए भारत को सौर, हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ऊर्जा में निवेश तेज़ करना चाहिए।
समग्र रूप से, यह कदम दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को पुनर्स्थापित कर सकता है, पर इसका सफल होना कुशल नीति क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा।
Mohamed Rafi Mohamed Ansari
अक्तूबर 14, 2025 AT 15:52उपरोक्त विचारों को देखते हुए, भारत को वैकल्पिक आपूर्ति चैनल विकसित करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।
यह न केवल टैरिफ के प्रभाव को कम करेगा बल्कि दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगा।
अभिषेख भदौरिया
अक्तूबर 24, 2025 AT 03:52ऐसी भू‑राजनीतिक गड़बड़ में खुद को घुमा लेना कभी आसान नहीं होता।
फिर भी, यदि कृषि‑फ़ार्मा आयात को संतुलित रूप से किया गया तो किसानों को निश्चित लाभ मिल सकता है।
साथ ही, यह कदम भारतीय फार्मा उद्योग को भी नई तकनीकों के साथ विकसित कर सकता है।
Nathan Ryu
नवंबर 2, 2025 AT 15:52ऊर्जा और कृषि दोनों क्षेत्रों में रूसी सहयोग का विस्तार भारत के लिए दोधारी तलवार बन सकता है।
एक ओर यह रणनीतिक सुरक्षा प्रदान करेगा, तो दूसरी ओर यह निर्भरता बढ़ा सकता है।
Atul Zalavadiya
नवंबर 12, 2025 AT 03:52बिल्कुल, यह संतुलन न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक प्रभाव भी रखता है।
उपलब्ध आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि टैरिफ की वजह से भारतीय कंपनियों को नई सप्लाई लाईन्स खोजना पड़ेगा।
Amol Rane
नवंबर 21, 2025 AT 15:52रूसी‑भारतीय ऊर्जा बंधन पर चर्चा करते हुए यह कहना जरूरी है कि यह केवल व्यापार नहीं बल्कि मित्रता का प्रतीक भी है।
फिर भी, वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब दोनों पक्ष अपने-अपने हितों को पारदर्शी तौर पर पेश करें।
Venkatesh nayak
दिसंबर 1, 2025 AT 03:52सब कुछ स्पष्ट है, लेकिन इस प्रकार की नीति में हमेशा एक छिपा जोखिम रहता है-अधिक निर्भरता।
यदि भविष्य में कोई बड़ा वैश्विक व्यवधान आए तो भारत को अभिभूत हो सकता है।