देवशयनी एकादशी – क्या है और क्यों खास?
जब बात देवशयनी एकादशी, हिंदू पंचांग में छठी तिथि को मनाई जाने वाली एक प्रमुख एकादशी है, जिसमें स्नान, पूजा और उपवास किया जाता है. देवशयनी व्रत के नाम से भी इसे जाना जाता है। इस दिन का मुख्य लक्ष्य मन को शुद्ध करना, आत्मा को सुदृढ़ बनाना और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना है।
यह एकादशी, हर महीने के द्विदिवसीय अवधि में आती है, जिसमें विशेष उपवास और आध्यात्मिक अभ्यास शामिल होते हैं का हिस्सा है, इसलिए देवशयनी एकादशी को केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण परम्परा माना जाता है। एकादशी का सिद्धांत है ‘शरीर को शुद्ध कर मन को स्थिर किया जाए’, और इस अवधारणा को हर एकादशी में अनुप्रयोगित किया जाता है।
हिंदू कैलेंडर, या हिंदू पंचांग, सौर और चंद्र घटनाओं के आधार पर तिथियों का निर्धारण करता है, जिससे त्यौहार, व्रत और अनुष्ठान निर्धारित होते हैं, इस व्रत को विशेष रूप से निर्धारित करता है। पंचांग के अनुसार, इस एकादशी का तिथि ग्रहीत होते ही भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लाभों की अपेक्षा की जाती है।
उपवास के दौरान कई लोग शुद्ध जल, फल, दाल और हल्की सब्ज़ियां ही लेते हैं। यह सिर्फ भोजन में कमी नहीं, बल्कि शरीर को डिटॉक्स करने और मस्तिष्क को तनाव मुक्त करने का एक तरीका है। वैज्ञानिक अध्ययन यह दर्शाते हैं कि अंतराल उपवास रोग प्रतिरोधक प्रणाली को सुदृढ़ करता है और मेटाबॉलिक स्वास्थ्य में सुधार लाता है।
पूजा के लिये प्रसाद तैयार करना भी अहम है। आमतौर पर भजनों में शंख, धूप, अक्षत और कच्चा घी शामिल होते हैं। इन सामग्रियों का उपयोग ऊर्जा को स्थिर करने, वातावरण को पवित्र बनाने और मन को शांति देने में मदद करता है। कई परिवारों में इस दिन विशेष रूप से ‘देवशयनी’ की कथा सुनाई जाती है, जिससे सांस्कृतिक जुड़ाव और पारिवारिक एकता बढ़ती है।
भांग या अन्य औषधीय जड़ी-बूटियों का प्रयोग भी कुछ क्षेत्रों में किया जाता है, परन्तु आधुनिकीकरण के साथ अब सुरक्षित विकल्प जैसे कि हल्दी, नींबू पानी और शहद अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। ये उपाय न केवल उपवास को जारी रखने में मदद करते हैं, बल्कि प्रतिरक्षा को भी बढ़ाते हैं।
विभिन्न राज्यों में इस व्रत की अलग‑अलग परम्पराएँ मिलती हैं। उत्तर प्रदेश में ‘भोगा’ के रूप में मिठाई बनाकर भगवान को अर्पित की जाती है, जबकि दक्षिण भारत में ‘पोरिया’ या ‘केसरिया’ का परम्परागत व्यंजन तैयार किया जाता है। यह विविधता दर्शाती है कि कैसे एक ही तिथि को विभिन्न सांस्कृतिक रूपों में अपनाया गया है।
आध्यात्मिक रूप से, इस दिन ध्येय यह है कि व्यक्ति अपने अंदर की अँधेरियों को दूर कर प्रकाश की ओर बढ़े। कई योगी और साधु इस एकादशी को ध्यान एवं प्राणायाम के साथ जोड़ते हैं, जिससे मन की शांति और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
नीचे आप देखेंगे कि इस व्रत के बारे में विभिन्न लेख, विशेषज्ञ राय, और अनुभवजन्य टिप्स कैसे मदद कर सकते हैं। चाहे आप पहली बार व्रत रखने वाले हों या अनुभवी, यहाँ की जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। अब आगे बढ़ते हैं और इन जानकारी‑समृद्ध पोस्ट्स को देखें।
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देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु की उपासना का महत्वपूर्ण दिन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु का अभिषेक करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। राशि के अनुसार अलग-अलग वस्तुओं से अभिषेक करने के तरीके की जानकारी लेख में दी गई है।