वायनाड भूस्खलन: कारण, प्रभाव और भारत में ऐसी आपदाओं की वास्तविकता
जब बारिश बहुत ज़्यादा होती है, तो पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन, जमीन का अचानक और बड़े पैमाने पर नीचे फिसलना हो जाता है। इनमें से एक सबसे बड़ा और दर्दनाक उदाहरण है वायनाड भूस्खलन, केरल के उत्तरी हिस्से में हुए भारी भूस्खलन की घटना। यह एक ऐसी आपदा है जो सिर्फ़ प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवीय गलतियों और जलवायु परिवर्तन का भी नतीजा है। वायनाड में जमीन नरम है, पेड़ कम हैं, और इमारतें पहाड़ों के ढलान पर बन गई हैं। जब बारिश लगातार चलती है, तो ये सब मिलकर एक तबाही बन जाते हैं।
इस तरह के भूस्खलन उत्तर केरल, केरल का वह हिस्सा जहाँ बारिश और पहाड़ी भूमि दोनों ज़्यादा हैं में हर साल दोहराए जाते हैं। यहाँ के लोग बारिश के बाद अपने घरों के बाहर निकलने से पहले डरते हैं। नदियाँ बहुत तेज़ बहने लगती हैं, रास्ते बंद हो जाते हैं, और कई बार बचाव टीम भी पहुँच नहीं पाती। बारिश, इन आपदाओं का सीधा कारण, जो अब अनियमित और अधिक तीव्र हो गई है इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से प्रकृति पर नहीं डाली जा सकती। बर्बर खुदाई, जंगलों की कटाई, और नियमों का उल्लंघन — ये सब भूस्खलन को और बढ़ा रहे हैं।
इस वजह से जब वायनाड में भूस्खलन होता है, तो यह सिर्फ़ एक खबर नहीं बल्कि एक चेतावनी है। इसके बाद हम रोते हैं, दान देते हैं, और फिर भूल जाते हैं। लेकिन ये घटनाएँ बार-बार हो रही हैं — डरजीलिंग, मिरिक, और अब वायनाड। इन सबके पीछे एक ही तर्क छिपा है: हम प्रकृति के साथ नहीं, बल्कि उसके खिलाफ़ रह रहे हैं। नीचे आपको इसी तरह की आपदाओं, उनके असर, और जिन लोगों ने इनमें जान गंवाई, उनकी कहानियाँ मिलेंगी। ये खबरें बस अपडेट नहीं, बल्कि एक सवाल हैं — हम अगली बार क्या बदलेंगे?
डार्क टूरिज्म चेतावनी: केरल पुलिस द्वारा वायनाड भूस्खलन के बाद परामर्श जारी, वैश्विक हॉटस्पॉट्स और पर्यटकों की त्रासदी
केरल पुलिस ने वायनाड में 143 लोगों की मौत के बाद 'डार्क टूरिज्म' के खिलाफ एक चेतावनी जारी की है। डार्क टूरिज्म वह अवधारणा है जिसमें मौत, आपदा, या त्रासदी से संबंधित स्थानों का दौरा किया जाता है। हाल ही में हुए भूस्खलन ने इस प्रकार की पर्यटन के खतरों पर प्रकाश डाला है। पुलिस परामर्श सभी को प्राकृतिक आपदाओं और त्रासदियों के क्षेत्रों से बचने की सलाह देती है।