अमेरिका पीएसी: H-1B विवाद, ट्रम्प की नई नीति और भारतीय तकनीकी कर्मचारियों पर असर
जब बात आती है अमेरिका पीएसी, अमेरिकी शासन के तहत विदेशी कर्मचारियों के लिए लागू होने वाली नियमों और वीज़ा नीतियों का समूह, तो एक नाम हमेशा सामने आता है — H-1B, अमेरिका में विशेषज्ञता वाले विदेशी कर्मचारियों के लिए दिया जाने वाला काम का अस्थायी वीज़ा। ये वीज़ा भारत के लाखों तकनीकी युवाओं के लिए अमेरिका जाने का दरवाज़ा रहा है। लेकिन अब ये दरवाज़ा बंद होने की बजाय, उस पर ज़बरदस्त टैक्स और नियम लगाए जा रहे हैं।
2025 में, डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिकी राष्ट्रपति और इमीग्रेशन नीतियों के कठोर समर्थक ने एक ऐसा फैसला किया जिसने पूरी तकनीकी दुनिया को हिला दिया — हर H-1B वीज़ा के लिए $100,000 की फीस लगाना। ये नहीं कोई छोटी रकम है। ये एक कंपनी के लिए एक इंजीनियर को भर्ती करने का खर्च दोगुना कर देता है। इसका सीधा असर है: अमेरिकी कंपनियाँ अब भारतीय तकनीकी कर्मचारियों को नहीं बुला पा रहीं। यूएससीआईएस, अमेरिका की नागरिकता और इमीग्रेशन सेवा, जो H-1B वीज़ा जारी करती है अब हर आवेदन को एक अलग ब्यूरोक्रेटिक बंदरगाह बना चुकी है। दस लाख आवेदनों में से एक भी जल्दी नहीं निकल रहा।
इसका असर भारत पर भी पड़ रहा है। भारतीय आईटी कंपनियाँ, जो सैकड़ों लोगों को अमेरिका भेजती हैं, अब अपनी योजनाएँ बदल रही हैं। कुछ ने भारत में नौकरियाँ बढ़ा दी हैं। कुछ ने यूरोप या कनाडा की ओर देखना शुरू कर दिया है। लेकिन वो लोग जो अमेरिका के लिए तैयार हो चुके हैं — उनके लिए ये समय बेहद अजीब है। वो नौकरी पाने के लिए तैयार हैं, लेकिन वीज़ा नहीं मिल रहा।
अमेरिका पीएसी अब केवल एक नीति नहीं, बल्कि एक भावना बन गई है — जो भारतीय तकनीकी श्रम को दूर धकेल रही है। ये वीज़ा नहीं, एक बाधा है। लेकिन जब आप इस बारे में पढ़ते हैं कि कैसे किसी के जीवन को एक फीस बदल देती है, तो ये सिर्फ़ एक नीति नहीं लगती — ये एक इंसानी कहानी है।
इस पेज पर आपको ऐसे ही असली कहानियाँ मिलेंगी — जहाँ अमेरिका पीएसी के फैसले ने कैसे एक इंजीनियर की नौकरी बर्बाद कर दी, कैसे कंपनियाँ अपनी टीम बना रही हैं, और कैसे भारतीय युवा अब नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। ये सिर्फ़ खबरें नहीं, ये जीवन के टुकड़े हैं।
 
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