ब्रिटिश नक्शा: भारत के इतिहास और आधुनिक दुनिया में इसका प्रभाव
जब ब्रिटिश नक्शा बनाया गया, तो यह सिर्फ एक भूगोल का टुकड़ा नहीं था — यह ब्रिटिश नक्शा, एक ऐसा नक्शा जिसने भारत की सीमाओं, शहरों और प्रशासनिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया, जिसका असर आज भी दिखता है एक हथियार था। इसने नदियों को बदल दिया, गाँवों को नए जिलों में भाग दिया, और ऐसी सीमाएँ खींच दीं जो आज भी राजनीति, संस्कृति और अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करती हैं। इसके बिना आज का भारत असंभव होता।
ये नक्शे सिर्फ जमीन नहीं बाँटते थे — ये भारत का इतिहास, एक ऐसा समय जब ब्रिटिश शासन ने देश को अपने लाभ के लिए फाड़ दिया, जिसके निर्माण में नक्शे ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई को फिर से लिखते थे। जब लोगों को अपने गाँव के बारे में पूछा जाता था, तो वे अब जिला, राज्य या राष्ट्रीय सीमा के बारे में बताते थे — न कि अपने परंपरागत क्षेत्र के बारे में। ब्रिटिश शासन, एक ऐसी शक्ति जिसने भारत को नक्शे के जरिए नियंत्रित किया, जिसने भूगोल को राजनीति में बदल दिया ने ये नक्शे बनाए ताकि वह आसानी से कर वसूल सके, संसाधन निकाल सके, और विद्रोहों को दबा सके।
आज भी जब हम देखते हैं कि लद्दाख में राज्यत्व की मांग हो रही है, या जब बंगाल के लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने की कोशिश कर रहे हैं, तो वही ब्रिटिश नक्शा उनके पीछे खड़ा है। जब भारत ने पाकिस्तान को अलग किया, तो वह नक्शा फिर से उठा। जब अफगानिस्तान और बांग्लादेश के बीच क्रिकेट मैच खेले जाते हैं, तो वही नक्शा उन खिलाड़ियों के लिए अपना रास्ता बन गया है।
इस पेज पर आपको ऐसी ही खबरें मिलेंगी — जहाँ आज के राजनीतिक फैसले, क्रिकेट मैच, शहरों की सीमाएँ, या यहाँ तक कि आयकर फ़ाइलिंग के नियम भी उस पुराने नक्शे के छाया में चल रहे हैं। कुछ खबरें सीधी हैं, कुछ गहरी। कुछ आपको हैरान कर देंगी। कुछ आपको बताएंगी कि आज की दुनिया क्यों इस तरह बनी है।
ईरान का दावा: फारस की खाड़ी के द्वीपों पर ब्रिटिश नक्शा और ऐतिहासिक दस्तावेजों का सहारा
ईरान ने फारस की खाड़ी में स्थित तीन विवादास्पद द्वीपों - अबू मूसा, ग्रेटर टुंब और लेसर टुंब - पर अपने दावे को समर्थन देने के लिए 19वीं सदी के ब्रिटिश नक्शे का हवाला दिया है। ये द्वीप रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये लगभग 20% विश्व के तेल और 25% विश्व के द्रवीकृत प्राकृतिक गैस के मार्ग को नियंत्रित करते हैं। ईरान और यूएई के बीच इस मुद्दे को लेकर दशकों से विवाद जारी है।