हंगर स्ट्राइक – अधिकारों की भूख भरी आवाज़
जब हम हंगर स्ट्राइक, एक हथियार है जिसमें लोग भूख न रखकर अपने अधिकारों या मांगों को ज़ोर से पेश करते हैं. इसे अक्सर भूख प्रदर्शन कहा जाता है, और यह विधि सामाजिक, राजनीतिक या श्रमिक संघर्षों में असरदार साबित हुई है.
हंगर स्ट्राइक राजनीति से गहराई से जुड़ी है—किसी भी राजनैतिक आंदोलन में अगर पारम्परिक रैलियों या ध्वनि‑प्रदर्शन नहीं चल पाते तो भूख की अनोखी रणनीति अपनाई जाती है. अधिकार संघर्ष, सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों के लिए किए जाने वाले संघर्ष का एक प्रमुख रूप है यह, क्योंकि भूख रख कर व्यक्ति खुद को अत्यधिक असह्य बनाता है और यह सचेतना को जागरूक करता है. इसी तरह श्रम आंदोलन, कामगार वर्ग द्वारा बेहतर वेतन, सुरक्षा और अधिकारों की मांग करने वाला आंदोलन में भी हंगर स्ट्राइक ने कई बार सचेतना बढ़ाई है, जैसे 1970‑के दशक में भारत के टैगोर बँडलेव की कैंप में किसान ने किया था.
इतिहासिक झलक और ताज़ा उदाहरण
पहली दर्ज हंगर स्ट्राइक 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश‑इंडिया में हुई, जब भारत की स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने असहयोग आंदोलन में इसका प्रयोग किया. बाद में 1980 के दशक में भारतीय दार्शनिक जैन स्वामी ने पर्यावरणीय मुद्दों पर हंगर स्ट्राइक की, और हाल ही में किशोर छात्रों ने जलवायु परिवर्तन विरोध में इस पद्धति को अपनाया. हमारे पोर्टल पर ऐसे कई लेख मिले हैं जो इन घटनाओं को कवर करते हैं—जैसे "भारत ने पाकिस्तान को हराकर किया एशिया कप 2025 फ़ाइनल" में बताये गए राष्ट्रीय गर्व के साथ, सामाजिक मुद्दों पर भी उतनी ही तीव्रता दिखती है.
आज भी हंगर स्ट्राइक मीडिया में प्रमुख बनकर उभरती है। उदाहरण के तौर पर, एक पर्यावरणीय कार्यकर्ता ने जल संकट के खिलाफ नवीनीकृत जल‑शोधन प्रोजेक्ट की मांग में हंगर स्ट्राइक शुरू की, और इसकी कवरेज हमारे "रिलायंस, एनटीपीसी, आईसीआईसीआई बैंक के एजीएम" जैसी आर्थिक खबरों के साथ मिलकर दिखती है, जिससे पता चलता है कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दे एक दूसरे से जुड़े हैं. इसी तरह, "डोनाल्ड ट्रम्प ने $100,000 H‑1B फीस लागू" जैसी अंतरराष्ट्रीय नीतियों पर भी हंगर स्ट्राइक के माध्यम से सामाजिक प्रतिक्रिया देखी जा सकती है।
हंगर स्ट्राइक की प्रभावशीलता कई कारकों पर निर्भर करती है: प्रतिभागी की स्वास्थ्य स्थिति, जनता का समर्थन, मीडिया कवरेज और सरकार की प्रतिक्रिया. जब मीडिया गंभीरता से रिपोर्ट करता है, तो सरकार को जवाब देना कठिन हो जाता है, जैसे "Zelensky ने कहा: युद्ध समाप्त होते ही इस्तीफा" में दिखा कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आवाज़ उठाने के बाद प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार हमारे "डरजीलिंग में भारी बारिश से लैंडस्लाइड" जैसी आपदा रिपोर्टें भी दिखाती हैं कि जब जनता की सुरक्षा मुद्दा बन जाता है, तो हंगर स्ट्राइक जैसी मौन आवाज़ें भी तेज़ी से सुनी जाती हैं.
संक्षेप में, हंगर स्ट्राइक सिर्फ भूख न रखने की क्रिया नहीं, बल्कि यह अधिकार, राजनीति और श्रम आंदोलन के संगम पर खड़ी एक रणनीतिक आवाज़ है। अगर आप इस टैग पेज पर रुके हैं, तो आप विभिन्न क्षेत्रों—क्रिकेट, राजनीति, आर्थिक परिवर्तन और सामाजिक आंदोलन—से जुड़े लेखों की एक विस्तृत श्रृंखला पाएँगे, जहाँ हंगर स्ट्राइक के पहलू को विभिन्न परिप्रेक्ष्य में उजागर किया गया है. अब नीचे आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न खबरें, चाहे वो खेल की जीत हो या आर्थिक शेयरों की उथल‑पुथल, इस महत्वपूर्ण सामाजिक साधन से जुड़ी होती हैं.
लद्दाख में जेन‑ज़ी विरोध में हिंसा: 4 मौत, 80 से अधिक घायल
सोनम वांगचुक के नेतृत्व में लद्दाख में राज्यत्व और संवैधानिक सुरक्षा की माँगों के साथ शुरू हुई शांतिपूर्ण हंगर स्ट्राइक 24 सितंबर को दो बुजुर्ग प्रदर्शनकारियों के गिरने के बाद जेन‑ज़ी युवा समूह द्वारा बीजेपी और सरकारी इमारतों पर हमला करने तक पहुंची। इस संघर्ष में चार युवा आकस्मिक मारे गए, 80 से अधिक लोग घायल हुए और प्रदेश में कर्फ्यू लगा दिया गया।